Monday, March 21, 2011

(India Water Forum) विश्व जल दिवस (22 मार्च) - बान की मून का संदेश

 

विश्व जल दिवस



संसार इस समय जहां अधिक टिकाऊ भविष्य के निर्माण में व्यस्त हैं वहीं पानी, खाद्य तथा ऊर्जा की पारस्परिक निर्भरता की चुनौतियों का सामना हमें करना पड़ रहा है। जल के बिना न तो हमारी प्रतिष्ठा बनती है और न गरीबी से हम छुटकारा पा सकते हैं। फिर भी शुद्ध पानी तक पहुंच और सैनिटेशन यानी साफ-सफाई, संबंधी सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य तक पहुंचने में बहुतेरे देश अभी पीछे हैं।


वर्षाजल संचयन पर संयुक्त अपील

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने सुरक्षित पेयजल की मानव अधिकार के रूप में पुष्टि की है।

अब ऐसा समय है 884 मिलियन और अधिक लोगों के लिए पर्याप्त मात्रा में पेयजल की जरूरत है और इसके लिये दुनिया की सरकारों को पेयजल की सुरक्षित, सुलभ और सस्ती नियमित आपूर्ति के प्रावधान में योगदान देना है। विश्व जल दिवस 2011 के अवसर पर, अधोहस्ताक्षरी संस्थाएं वर्षाजल की पुरजोर वकालत कर रही हैं, इन सबका मानना है कि जल संबंधी मौजूदा समस्याओं से निपटने में वर्षाजल को भी एक सशक्त साधन समझा जाए।


गतिविधियां

वाटरएड और फोर्स का 'वाक फॉर वाटर'


'वाक फॉर वाटर' नामक रैली वाटरएड और फोर्स ने निकाली। इंडिया गेट से निकली रैली ने लगभग 5 किमी की दूरी पूरी की। जो इंडिया गेट से जल यात्रा निकली, वह राजपथ से होकर विजय चौक के पास समाप्त हुई। इसे 'वॉक फॉर वॉटर' नाम दिया गया। यह इस बात की प्रतीक थी कि देश में अभी लोगों को खासकर महिलाओं को कई जगहों पर 5 किमी से भी ज्यादा दूरी रोजाना पानी के लिए जाना पड़ता है

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  • विशेष लेख

    जितना बचाएंगे उतना ही पाएंगे

    Source: 
    दैनिक भास्कर, 18 मार्च 2011
    Author: 
    लेस्टर आर ब्राउन
    बर्बादी का एक बड़ा कारण यह है कि पानी बहुत सस्ता और आसानी से सुलभ है। कई देशों में सरकारी सब्सिडी के कारण पानी की कीमत बेहद कम है। इससे लोगों को लगता है कि पानी बहुतायत में उपलब्ध है, जबकि हकीकत उलटी है।
    पिछली आधी सदी में विश्व ने जमीन की उत्पादकता तीन गुना बढ़ाने में सफलता हासिल की है। पानी के गंभीर संकट को देखते हुए पानी की उत्पादकता बढ़ाने की भी ठीक वैसी ही जरूरत है। चूंकि एक टन अनाज उत्पादन में 1000 टन पानी की जरूरत होती है और पानी का 70 फीसदी हिस्सा सिंचाई में खर्च होता है, इसलिए पानी की उत्पादकता बढ़ाने के लिए जरूरी है कि सिंचाई का कौशल बढ़ाया जाए। यानी कम पानी से अधिकाधिक सिंचाई की जाए।

    अभी होता यह है कि बांधों से नहरों के माध्यम से पानी छोड़ा जाता है, जो किसानों के खेतों तक पहुंचता है। जल परियोजनाओं के आंकड़े बताते हैं कि छोड़ा गया पानी शत-प्रतिशत खेतों तक नहीं पहुंचता। कुछ पानी रास्ते में भाप बनकर उड़ जाता है, कुछ जमीन में रिस जाता है और कुछ बर्बाद हो जाता है। जल नीति के विश्लेषक सैंड्रा पोस्टल और एमी वाइकर्स ने पाया कि 

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