Tuesday, March 29, 2011

एकजुट हो जाओ इससे पहले कि जलकर ख़ाक हो जाओ

एक अहम  मज़मून आप देख सकते हैं यहाँ

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Friday, March 25, 2011

पाकिस्तान सरकार अल्पसंख्यकों के खि़लाफ़ भेदभाव नहीं रखती लेकिन आतंकवादी गतिविधियों ने ख़ौफ़ और दहशत फैला दी है

अमृतसर (एजेंसियाँ)। ‘हिन्दू और सिख परिवार निजि कारणों और हालात की वजह से पाकिस्तान से हिन्दुस्तान पलायन कर रहे हैं और यह कि जब कभी भी ऐसे वाक़यात पेश आते हैं तो फ़ौरन ही मीडिया उन को उजागर करता है। वैसे भी पाकिस्तान में हर एक के लिए एक हालात नहीं हैं। यहाँ तक कि मुसलमानों को भी अग़वा किया जाता है और वे भी आतंकवाद के साये में रह रहे हैं।‘
इन ख़यालात का इज़्हार 350 लोगों वाले एक हिन्दू जत्थे के सदस्यों ने किया है जो रायपुर शादानी दरबार के आयोजन के अवसर पर एक धार्मिक समारोह में शिरकत के लिए कल बुध के रोज़ हिन्दुस्तान पहुंचा था। पाकिस्तान राष्ट्रीय असेंबली के सदस्य हर्ष कुमार ने कहा कि हम हिन्दुस्तान के लिए जाने वाले पाकिस्तानी हिन्दुओं का हौसला तोड़ते हैं लेकिन उनमें से कुछ अपने निजि कारणों से पलायन करके हिन्दुस्तान आए हैं। उन्होंने कहा कि ख़ैबर पख्तवानवाह और बलूचिस्ताने जैसे युद्ध प्रभावित इलाक़े हैं जहाँ न केवल अल्पसंख्यक समुदायों को आतंकवाद का सामना करना पड़ रहा है बल्कि प्रतिष्ठित मुसलमान भी आतंवादी हमलों का शिकार हुए हैं। इन इलाक़ों में आतंकवाद अपने चरम पर है और बिना किसी धार्मिक भेदभाव के हरेक इससे परेशान है। उन्होंने कहा कि क्योंकि हिन्दू-सिख अल्पसंख्या में हैं इसलिए उनका आसानी से नोटिस ले लिया जाता है और मीडिया की उन पर तवज्जो होती है। उन्होंने कहा कि कुछ हिन्दू और सिख ख़ानदान खुद अपने आपको कमज़ोर और मुफ़लिस ख़याल करते हैं। इसलिए वे पाकिस्तान से पलायन करने की कोशिश करते हैं।
एक श्रृद्धालु प्रदीप कुमार ने कहा कि आतंकवाद के कई मामलों में अल्पसंख्यकों का अपहरण किया गया और उन्हें हलाक किया गया है जिससे कि वे पाकिस्तान में खुद को असुरक्षित समझते हैं। उन्होंने इस बात से सहमति जताई कि पाकिस्तान में कई हिन्दू और सिख ख़ानदानों ने पलायन करने के लिए मन बना लिया था लेकिन अपना इरादा उस समय बदल दिया जब उन्हें वीज़ा की समस्याएं पेश आईं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान सरकार अल्पसंख्यकों के खि़लाफ़ भेदभाव नहीं रखती लेकिन आतंकवादी गतिविधियों ने ख़ौफ़ और दहशत फैला दी है। एक और श्रृद्धालु प्रकाश बत्रा का कहना था कि ऐसा मालूम होता है कि पाकिस्तान सरकार अल्पसंख्यकों और साथ ही मुसलमानों को सुरक्षा देने में बेसहारा हो गई है। मुझे ताज्जुब है कि मुसलमानों के अपहरण के वाक़ेयात को मीडिया में उजागर क्यों नहीं किया जाता और जब कभी भी अल्पसंख्यक समुदाय के एक मेंबर के साथ कोई ग़लत काम होता तो उसकी ब्रेकिंग न्यूज़ बन जाती है।
राष्ट्रीय सहारा उर्दू दिनांक २५ मार्च २०११ प. से साभार

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Monday, March 21, 2011

(India Water Forum) विश्व जल दिवस (22 मार्च) - बान की मून का संदेश

 

विश्व जल दिवस



संसार इस समय जहां अधिक टिकाऊ भविष्य के निर्माण में व्यस्त हैं वहीं पानी, खाद्य तथा ऊर्जा की पारस्परिक निर्भरता की चुनौतियों का सामना हमें करना पड़ रहा है। जल के बिना न तो हमारी प्रतिष्ठा बनती है और न गरीबी से हम छुटकारा पा सकते हैं। फिर भी शुद्ध पानी तक पहुंच और सैनिटेशन यानी साफ-सफाई, संबंधी सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य तक पहुंचने में बहुतेरे देश अभी पीछे हैं।


वर्षाजल संचयन पर संयुक्त अपील

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने सुरक्षित पेयजल की मानव अधिकार के रूप में पुष्टि की है।

अब ऐसा समय है 884 मिलियन और अधिक लोगों के लिए पर्याप्त मात्रा में पेयजल की जरूरत है और इसके लिये दुनिया की सरकारों को पेयजल की सुरक्षित, सुलभ और सस्ती नियमित आपूर्ति के प्रावधान में योगदान देना है। विश्व जल दिवस 2011 के अवसर पर, अधोहस्ताक्षरी संस्थाएं वर्षाजल की पुरजोर वकालत कर रही हैं, इन सबका मानना है कि जल संबंधी मौजूदा समस्याओं से निपटने में वर्षाजल को भी एक सशक्त साधन समझा जाए।


गतिविधियां

वाटरएड और फोर्स का 'वाक फॉर वाटर'


'वाक फॉर वाटर' नामक रैली वाटरएड और फोर्स ने निकाली। इंडिया गेट से निकली रैली ने लगभग 5 किमी की दूरी पूरी की। जो इंडिया गेट से जल यात्रा निकली, वह राजपथ से होकर विजय चौक के पास समाप्त हुई। इसे 'वॉक फॉर वॉटर' नाम दिया गया। यह इस बात की प्रतीक थी कि देश में अभी लोगों को खासकर महिलाओं को कई जगहों पर 5 किमी से भी ज्यादा दूरी रोजाना पानी के लिए जाना पड़ता है

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  • विशेष लेख

    जितना बचाएंगे उतना ही पाएंगे

    Source: 
    दैनिक भास्कर, 18 मार्च 2011
    Author: 
    लेस्टर आर ब्राउन
    बर्बादी का एक बड़ा कारण यह है कि पानी बहुत सस्ता और आसानी से सुलभ है। कई देशों में सरकारी सब्सिडी के कारण पानी की कीमत बेहद कम है। इससे लोगों को लगता है कि पानी बहुतायत में उपलब्ध है, जबकि हकीकत उलटी है।
    पिछली आधी सदी में विश्व ने जमीन की उत्पादकता तीन गुना बढ़ाने में सफलता हासिल की है। पानी के गंभीर संकट को देखते हुए पानी की उत्पादकता बढ़ाने की भी ठीक वैसी ही जरूरत है। चूंकि एक टन अनाज उत्पादन में 1000 टन पानी की जरूरत होती है और पानी का 70 फीसदी हिस्सा सिंचाई में खर्च होता है, इसलिए पानी की उत्पादकता बढ़ाने के लिए जरूरी है कि सिंचाई का कौशल बढ़ाया जाए। यानी कम पानी से अधिकाधिक सिंचाई की जाए।

    अभी होता यह है कि बांधों से नहरों के माध्यम से पानी छोड़ा जाता है, जो किसानों के खेतों तक पहुंचता है। जल परियोजनाओं के आंकड़े बताते हैं कि छोड़ा गया पानी शत-प्रतिशत खेतों तक नहीं पहुंचता। कुछ पानी रास्ते में भाप बनकर उड़ जाता है, कुछ जमीन में रिस जाता है और कुछ बर्बाद हो जाता है। जल नीति के विश्लेषक सैंड्रा पोस्टल और एमी वाइकर्स ने पाया कि 

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