Saturday, July 7, 2012

पवित्रता ईश्वर के नाम से ही है

धोखे में वे लोग हैं जो अपनी माँ के साथ रिश्ते की पवित्रता भी बनाए रखते हैं और ईश्वर का इन्कार भी करते हैं. पवित्रता ईश्वर के नाम से ही है. पवित्रता नास्तिकता और विज्ञान का विषय नहीं है. 
जो पवित्रता को मानता है और उसे क़ायम करने वाले ईश्वर को नहीं मानता, वह अपनी हठ के कारण सदा अंतर्द्वंद और विरोधाभास में जीता है और इसी में वह मर जाता है. 

पोस्ट का लिंक : http://blogkikhabren.blogspot.in/2012/07/blog-post.html

Monday, September 19, 2011

हमारी आत्मा में बसा है भ्रष्टाचार -सौरभ सुमन, गलियां


सुना है आजकल शहद और नारियल पानी की देश में मांग बढ़ गई है। शायद साउथ के किसानों के चेहरों पर शहद और नारियल पानी में पाए जाने वाले प्राकृतिक चीजों का असर भी शायद अब दिखने लगे। मांग में तेजी के लिए सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। वजह भ्रष्टाचार के खिलाफ 13 दिन तक अन्ना बाबा का अनशन। मांग मान लेने पर उन्होंने अनशन तोड़ा। अनशन तो ट्रॉपिकाना और रीयल जूस से तोड़ने की भी बात आई लेकिन अन्ना ने शहद और नारियल पानी से ही अनशन तोड़ा। भ्रष्टाचार के कारण अनशन ने इसकी मांग भी बढा़ दी।
लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि आखिर कुछ महीनों से देशभर में अनशन और भ्रष्टाचार जैसे शब्द जोर-शोर से क्यों तैर रहे हैं? हजारों-लाखों लोग दिल्ली के रामलीला मैदान से लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में भ्रष्टाचार के खिलाफ लामबंद हो जाते हैं। बेशक यह देश की जनता के लिए एक सकारात्मक संकेत है। लेकिन क्या हम सब ईमानदारी से भ्रष्टाचार से लड़ने की ताकत या नीयत रखते हैं? ऐसा अभी के समय में तो बिल्कुल ही नहीं है। दरअसल भ्रष्टाचार तो हमारी आत्मा में बसा है। यह सौ फीसदी कड़वी सच्चाई है। यहां पर भ्रष्टाचार को सिर्फ आर्थिक दृष्टिकोण से देखना गलत होगा। यह हमारे समाज, हमारे चरित्र, हमारी सोच और हमारे कर्म में रचा-बसा है। भ्रष्टाचार तो हमारी रगों में दौड़ रहा है, भले ही कुछ लोग मेरी इस कड़वी बात से सहमत न हों, लेकिन यही सच है।
सुना है आजकल शहद और नारियल पानी की देश में मांग बढ़ गई है। शायद साउथ के किसानों के चेहरों पर शहद और नारियल पानी में पाए जाने वाले प्राकृतिक चीजों का असर भी शायद अब दिखने लगे। मांग में तेजी के लिए सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। वजह भ्रष्टाचार के खिलाफ 13 दिन तक अन्ना बाबा का अनशन। मांग मान लेने पर उन्होंने अनशन तोड़ा। अनशन तो ट्रॉपिकाना और रीयल जूस से तोड़ने की भी बात आई लेकिन अन्ना ने शहद और नारियल पानी से ही अनशन तोड़ा। भ्रष्टाचार के कारण अनशन ने इसकी मांग भी बढा़ दी।
मेरा मानना है कि अन्ना के अनशन के बाद भी आज कोई इसांन अपने निजी काम को ईमानदारी से कराने की कोशिश करता भी है तो जल्द हार मानकर सामने वाले को तुरंत घूस का प्रसाद बांट देता है। क्योंकि हर कोई सोचता है कि अब कौन इतने चक्कर काटेगा और अपना समय खराब करेगा। इसी सोच ने तो भ्रष्ट लोगों की झोली भरी है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है। हम भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए कानून की भी बात खूब करते हैं। लेकिन यह बताइए कि अगर घूस लेने वाला और घूस देने वाला दोनों तैयार हो तो कौन सा कानून इन्हें यह करने पर रोक लगा देगा। यह तो वही बात हो गई कि मियां बीबी राजी तो क्या करेगा काजी। इसलिए भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए हमें सबसे पहले आत्मा से ईमानदार और साफ नियत वाला बनना पहले जरूरी है।
भ्रष्टाचार में हम आज इतने डूबे हुए हैं कि जब कभी भी हमें मौका मिलता है, हम मौके पर चौके जड़ने से चूकते नहीं हैं। वरना क्या वजह है कि सब कुछ से संपन्न इंसान भी करोड़ों रुपए का गोलमाल कर जाता है। स्वार्थ, प्रलोभन, महत्वाकांक्षा और अधिक पाने की चाहत ने हमें अंधा बना दिया और भ्रष्टाचार का गुलाम। आज इसी देश में ऐसे कई उदाहरण हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी में पूरी ईमानदारी को बरकरार रखा और शान से सर उठाके शीर्ष पर पहुंचे। पेशा के नाम पर भ्रष्टाचार करने वालों की आज सबसे लंबी फौज है। वकील अपने क्लाइंट से केस के नाम पर पैसे उगाहता है, पुलिस वाला नेशनल हाइवे पर ट्रक ड्राइवर से 50-100 रुपए की उगाही में लगा है, कॉरपोरेट में डील के लिए मोटी रकम की आरती की जाती है, बाबू व साहब तो पान दबाए बड़े प्यार से मीठी बातें कर कोड वर्ड में सेवा की रकम समझा जाते हैं। ऐसी सूची बड़ी लंबी हो सकती है। फिर हम किस बात के लिए भ्रष्टाचार से लड़ने की बात करते हैं जब हम खुद ही लड़ने और ईमानदार बनने को तैयार नहीं।
बात सामाजिक भ्रष्टाचार की भी जरूर होनी चाहिए। छोटे शहरों में तो सामाजिक भ्रष्टाचार थोड़ी कम भी है। महानगरों में तो यह अपने चरम पर है। शहर में सड़क पर अगर किसी का एक्सीडेंट हो जाय तो कुछ ही ऐसे लोग हैं जो मदद के लिए दौड़ते हैं, वरना टाई और कोट पहन कर बड़ी गाड़ियों में चलने वाले तो उसके बगल से गुजर जाते हैं। हम अक्सर सोचते हैं कि अपना क्या जाता है और कौन मुफ्त में अपने सिर परेशानी ले। भ्रष्टाचार की हालत तो इतनी खराब है कि घंटों इस पर लगातार बहस चल सकती है। लेकिन कुल मिलाकर हमें अपने आप को आत्मा से ईमानदार, संतुष्ट और मदद करने जैसी इच्छाशक्ति जगानी होगी, वरना अन्ना जैसे आंदोलन होते रहेंगे और कुछ दिनों बाद भुला दिये जाते रहेंगे।
http://blogs.livehindustan.com/yuva_park/2011/09/17/%E0%A4%B9%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%86%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%AC%E0%A4%B8%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%88-%E0%A4%AD%E0%A5%8D%E0%A4%B0/
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Tuesday, March 29, 2011

एकजुट हो जाओ इससे पहले कि जलकर ख़ाक हो जाओ

एक अहम  मज़मून आप देख सकते हैं यहाँ

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Friday, March 25, 2011

पाकिस्तान सरकार अल्पसंख्यकों के खि़लाफ़ भेदभाव नहीं रखती लेकिन आतंकवादी गतिविधियों ने ख़ौफ़ और दहशत फैला दी है

अमृतसर (एजेंसियाँ)। ‘हिन्दू और सिख परिवार निजि कारणों और हालात की वजह से पाकिस्तान से हिन्दुस्तान पलायन कर रहे हैं और यह कि जब कभी भी ऐसे वाक़यात पेश आते हैं तो फ़ौरन ही मीडिया उन को उजागर करता है। वैसे भी पाकिस्तान में हर एक के लिए एक हालात नहीं हैं। यहाँ तक कि मुसलमानों को भी अग़वा किया जाता है और वे भी आतंकवाद के साये में रह रहे हैं।‘
इन ख़यालात का इज़्हार 350 लोगों वाले एक हिन्दू जत्थे के सदस्यों ने किया है जो रायपुर शादानी दरबार के आयोजन के अवसर पर एक धार्मिक समारोह में शिरकत के लिए कल बुध के रोज़ हिन्दुस्तान पहुंचा था। पाकिस्तान राष्ट्रीय असेंबली के सदस्य हर्ष कुमार ने कहा कि हम हिन्दुस्तान के लिए जाने वाले पाकिस्तानी हिन्दुओं का हौसला तोड़ते हैं लेकिन उनमें से कुछ अपने निजि कारणों से पलायन करके हिन्दुस्तान आए हैं। उन्होंने कहा कि ख़ैबर पख्तवानवाह और बलूचिस्ताने जैसे युद्ध प्रभावित इलाक़े हैं जहाँ न केवल अल्पसंख्यक समुदायों को आतंकवाद का सामना करना पड़ रहा है बल्कि प्रतिष्ठित मुसलमान भी आतंवादी हमलों का शिकार हुए हैं। इन इलाक़ों में आतंकवाद अपने चरम पर है और बिना किसी धार्मिक भेदभाव के हरेक इससे परेशान है। उन्होंने कहा कि क्योंकि हिन्दू-सिख अल्पसंख्या में हैं इसलिए उनका आसानी से नोटिस ले लिया जाता है और मीडिया की उन पर तवज्जो होती है। उन्होंने कहा कि कुछ हिन्दू और सिख ख़ानदान खुद अपने आपको कमज़ोर और मुफ़लिस ख़याल करते हैं। इसलिए वे पाकिस्तान से पलायन करने की कोशिश करते हैं।
एक श्रृद्धालु प्रदीप कुमार ने कहा कि आतंकवाद के कई मामलों में अल्पसंख्यकों का अपहरण किया गया और उन्हें हलाक किया गया है जिससे कि वे पाकिस्तान में खुद को असुरक्षित समझते हैं। उन्होंने इस बात से सहमति जताई कि पाकिस्तान में कई हिन्दू और सिख ख़ानदानों ने पलायन करने के लिए मन बना लिया था लेकिन अपना इरादा उस समय बदल दिया जब उन्हें वीज़ा की समस्याएं पेश आईं। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान सरकार अल्पसंख्यकों के खि़लाफ़ भेदभाव नहीं रखती लेकिन आतंकवादी गतिविधियों ने ख़ौफ़ और दहशत फैला दी है। एक और श्रृद्धालु प्रकाश बत्रा का कहना था कि ऐसा मालूम होता है कि पाकिस्तान सरकार अल्पसंख्यकों और साथ ही मुसलमानों को सुरक्षा देने में बेसहारा हो गई है। मुझे ताज्जुब है कि मुसलमानों के अपहरण के वाक़ेयात को मीडिया में उजागर क्यों नहीं किया जाता और जब कभी भी अल्पसंख्यक समुदाय के एक मेंबर के साथ कोई ग़लत काम होता तो उसकी ब्रेकिंग न्यूज़ बन जाती है।
राष्ट्रीय सहारा उर्दू दिनांक २५ मार्च २०११ प. से साभार

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Monday, March 21, 2011

(India Water Forum) विश्व जल दिवस (22 मार्च) - बान की मून का संदेश

 

विश्व जल दिवस



संसार इस समय जहां अधिक टिकाऊ भविष्य के निर्माण में व्यस्त हैं वहीं पानी, खाद्य तथा ऊर्जा की पारस्परिक निर्भरता की चुनौतियों का सामना हमें करना पड़ रहा है। जल के बिना न तो हमारी प्रतिष्ठा बनती है और न गरीबी से हम छुटकारा पा सकते हैं। फिर भी शुद्ध पानी तक पहुंच और सैनिटेशन यानी साफ-सफाई, संबंधी सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य तक पहुंचने में बहुतेरे देश अभी पीछे हैं।


वर्षाजल संचयन पर संयुक्त अपील

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने सुरक्षित पेयजल की मानव अधिकार के रूप में पुष्टि की है।

अब ऐसा समय है 884 मिलियन और अधिक लोगों के लिए पर्याप्त मात्रा में पेयजल की जरूरत है और इसके लिये दुनिया की सरकारों को पेयजल की सुरक्षित, सुलभ और सस्ती नियमित आपूर्ति के प्रावधान में योगदान देना है। विश्व जल दिवस 2011 के अवसर पर, अधोहस्ताक्षरी संस्थाएं वर्षाजल की पुरजोर वकालत कर रही हैं, इन सबका मानना है कि जल संबंधी मौजूदा समस्याओं से निपटने में वर्षाजल को भी एक सशक्त साधन समझा जाए।


गतिविधियां

वाटरएड और फोर्स का 'वाक फॉर वाटर'


'वाक फॉर वाटर' नामक रैली वाटरएड और फोर्स ने निकाली। इंडिया गेट से निकली रैली ने लगभग 5 किमी की दूरी पूरी की। जो इंडिया गेट से जल यात्रा निकली, वह राजपथ से होकर विजय चौक के पास समाप्त हुई। इसे 'वॉक फॉर वॉटर' नाम दिया गया। यह इस बात की प्रतीक थी कि देश में अभी लोगों को खासकर महिलाओं को कई जगहों पर 5 किमी से भी ज्यादा दूरी रोजाना पानी के लिए जाना पड़ता है

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  • विशेष लेख

    जितना बचाएंगे उतना ही पाएंगे

    Source: 
    दैनिक भास्कर, 18 मार्च 2011
    Author: 
    लेस्टर आर ब्राउन
    बर्बादी का एक बड़ा कारण यह है कि पानी बहुत सस्ता और आसानी से सुलभ है। कई देशों में सरकारी सब्सिडी के कारण पानी की कीमत बेहद कम है। इससे लोगों को लगता है कि पानी बहुतायत में उपलब्ध है, जबकि हकीकत उलटी है।
    पिछली आधी सदी में विश्व ने जमीन की उत्पादकता तीन गुना बढ़ाने में सफलता हासिल की है। पानी के गंभीर संकट को देखते हुए पानी की उत्पादकता बढ़ाने की भी ठीक वैसी ही जरूरत है। चूंकि एक टन अनाज उत्पादन में 1000 टन पानी की जरूरत होती है और पानी का 70 फीसदी हिस्सा सिंचाई में खर्च होता है, इसलिए पानी की उत्पादकता बढ़ाने के लिए जरूरी है कि सिंचाई का कौशल बढ़ाया जाए। यानी कम पानी से अधिकाधिक सिंचाई की जाए।

    अभी होता यह है कि बांधों से नहरों के माध्यम से पानी छोड़ा जाता है, जो किसानों के खेतों तक पहुंचता है। जल परियोजनाओं के आंकड़े बताते हैं कि छोड़ा गया पानी शत-प्रतिशत खेतों तक नहीं पहुंचता। कुछ पानी रास्ते में भाप बनकर उड़ जाता है, कुछ जमीन में रिस जाता है और कुछ बर्बाद हो जाता है। जल नीति के विश्लेषक सैंड्रा पोस्टल और एमी वाइकर्स ने पाया कि 

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    Thursday, August 12, 2010

    क्या यह सही है कि पेड़-पौधे जीवित चीज़ माने जाते हैं ? - Yunus Khan


    @ राष्ट्रधर्म सेवा संघ ! क्या यह सही है कि पेड़-पौधे जीवित चीज़ माने जाते हैं ?
    # क्या यह सही है कि पेड़-पौधों में तंत्रिका तंत्र भी पाया जाता है ?
    # क्या यह सही है कि पेड़-पौधों में नर और मादा भी होते हैं ? और उनमें अनुभूतियां भी होती हैं ? # क्या पेड़-पौधों पर अन्य करोड़ों जीव भी होते हैं ?
    # अगर यह सब सही है तो फिर मनुष्य को क्या अधिकार है कि वह हरे पेड़ काटकर अपने लिये फ़र्नीचर बनाये ?
    # साग-सब्ज़ी काटकर जीवों की हत्या करे और उन्हें खाये ?
    आप कहते हैं -


    सभी उसी परमात्मा के जीव हैं, चाहे वह कीडा हो या हाथी, परमात्मा के लिए इनमें कोई अन्तर नहीं है, इसलिए सभी जीवों पर दया किजिए।

    आपकी दया से ये सब जीव क्यों महरूम रह जाते हैं ?


    मेरा यह कमेंट है इस जगह पर


    http://vedquran.blogspot.com/2010/08/ramazan-anwer-jamal.html देखिये




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